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नौ दिवसीय श्रीराम कथा का हुआ समापन, जगत् गुरु स्वामी श्री देवाचार्य जी ने कराया कथा का रसपान।

नौ दिवसीय श्रीराम कथा का हुआ समापन, जगत् गुरु स्वामी श्री देवाचार्य जी ने कराया कथा का रसपान।

बिजयनगर (रामकिशन वैष्णव) किशनगढ़ लक्ष्मी नारायण विहार कॉलोनी में आयोजित नौदिवसीय श्री राम कथा के नौवें दिन सोमवार को व्यास पातालपुरी पीठाधीश्वर अनंत श्री विभूषित  श्रीमद् जगतगुरु नरहरियानंद द्वाराचार्य श्री बालक देवाचार्य जी महाराज ने कथा में बताया कि  प्रभु श्रीराम राज्याभिषेक के लिए लंका से पुष्पक विमान में बैठकर अयोध्या के लिए प्रस्थान करते हुए राम  कथा का रसपान कराया । कथा में प्रभु के साथ पुष्पक विमान में मां सीता, लक्ष्मण जी, हनुमान जी, अंगद, नल-नील, सुग्रीव जी और द्विध मयंक तथा विभीषण जी साथ चले। प्रभु ने मां सीता को सारे स्थान दिखाएं, कहां रावण, कहां मेघनाथ और कहां कुंभकरण की मृत्यु हुई। उसके पश्चात प्रभु ने सेतु बंधन और भगवान रामेश्वरम को प्रणाम किया।
देखते ही देखते पंचवटी वहां से चित्रकूट और चित्रकूट से तीर्थराज प्रयाग पहुंचे। प्रयागराज पहुंच के प्रभु ने हनुमान जी को भेजा और कहा अयोध्या जाकर सूचना दीजिए, कि मैं आ रहा हूं।
भगवान प्रयागराज के बाद श्रृंगवेरपुर गंगा नदी के किनारे आए। मां सीता ने गंगा जी की पूजा की है। हनुमान जी ने अयोध्या में जाकर सूचना दी की प्रभु आ रहे हैं। भरत जी को प्रभु के आने की सूचना प्राप्त हुई, तो भरत जी गुरुदेव भगवान के पास पहुंचे और प्रभु के आने की सूचना गुरुदेव को दी। गुरुदेव ने दो सेवकों को बुलाया और कहा पूरी अयोध्या को सजा दो।
लोगों ने अपने-अपने घरों के द्वार पर बंधनवार लगाएं, स्वर्ण कलश को सजाया और दीपक लगाया। पुष्पक विमान अयोध्या के ऊपर पहुंचा तो प्रभु ने अयोध्या की भव्यता और सुंदरता को देखा।
प्रभु श्री राम और लक्ष्मण जी गुरुदेव भगवान के पास पहुंचे और चरणों में दंडवत किया। प्रभु ने सभी ब्राह्मणों को प्रणाम किया है। भरत जी प्रभु के चरणों में आकर गिर गए और प्रभु श्री राम ने बार बस भरतजी को उठाकर और हृदय से लगा लिया।
उसके पश्चात चारों भाई एक दूसरे से मिले। अयोध्या वासियों के मन में भी भाव आया कि जैसे भगवान भरत जी से मिले हैं वैसे ही हमसे भी मिले। प्रभु ने अनेका अनेक रूप धारण किया और सभी से प्रत्यक्ष रूप से मिले।
वृक्षों से वृक्ष बनकर, पशुओं से पशु बनकर और पंछियों से पंछी बनकर। सभी को यही लगा कि प्रभु भरत जी के बाद पहले मुझसे मिलने आए। लेकिन यह प्रभु की माया कोई नहीं जान पाया। प्रभु ने अपने मित्रों का परिचय गुरुदेव भगवान से कराया। उसके पश्चात पहले प्रभु मां कैकई के भवन में गए। प्रभु ने मां कैकई को अनेक प्रकार से समझाया। प्रभु श्री राम ने तीनों भाइयों को अपने हाथों से सजाकर दिव्या आभूषण पहनाये और फिर खुद स्नान करके दिव्या आभूषण पहनकर गुरुदेव के समक्ष प्रस्तुत हुए। गुरुदेव के मन में भाव आया कि मैं राम का आज ही अभिषेक करूंगा
गुरुदेव भगवान ने दिव्या सिंहासन मंगवाया। प्रभु श्री राम मां सीता के साथ उस दिव्या सिंहासन पर विराजमान हुए। मुनियों ने वेद मंत्र का गान प्रारंभ किया। देवताओं ने आकाश से पुष्प वर्षा की। प्रथम तिलक गुरु वशिष्ठ जी ने किया और सभी मुनि लोग सस्ती वचन और वेद की ऋचाओ का जाप करने लगे। और तीनों लोकों में प्रभु की जय जयकार होने लगती है पूरे विश्व में राम राज्य की स्थापना हुई। और श्री राम राज्याभिषेक पूर्णिमा हुआ।भगवान शंकर माता पार्वती से कहते हैं कि मेरे मन में जो रचा था वही तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है। ऐसा कहना है, पाताल पुरी पीठाधीश्वर अनंत विभूषित श्री मद् जगतगुरु नरहरियानन्द पीठाधीश्वर बालक देवाचार्य जी महाराज का । उक्त नौ दिवसीय  कथा श्याम सुन्दर  कौशल्या देवी जी नरहरियानन्दी परिवार किशनगढ़ द्वारा राम कथा का आयोजन कराया गया। नरहरियानन्दी परिवार ने  कहा कि हम सब जनो का अहोभाग्य है कि हम सब महाराज के मुखबिद से संगीत मय कथा का लाभांश ग्रहण किया। इस दौरान वैष्णव समाज के गणमान्यजन सहित कई लोग मौजूद थे।

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