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मनुष्य की प्रकृति में सुधार संत्सग से ही संभव है। =श्री दिव्य मोरारी बापू

मनुष्य की प्रकृति में सुधार संत्सग से ही संभव है। =श्री दिव्य मोरारी बापू

बिजयनगर (रामकिशन वैष्णव) श्री श्री 1008 श्री महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू ने रामगंज कोटा में चल रहे श्री दिव्य सत्संग में बताया कि सम्पूर्ण प्रकृति में विकृति आ गई है, इसका सुधार सत्संग से ही हो सकता है। प्रकृति का दो अर्थ है- एक संसार की प्रकृति, जिसे माया भी कहते हैं। और एक मनुष्य की व्यक्तिगत प्रकृति है, जिसे स्वभाव कहते हैं।
मति कीरति गति भूति भलाई। जब जेहि जतन जहां जेहि पाई।।
सो जानब सत्संग प्रभाऊ।
लोकहुँ वेद न आन उपाऊ।।
बिनु सत्संग विवेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।।
1-मति ÷ उत्तम बुद्धि, 2-भलाई÷ दूसरे के मंगल करने का स्वभाव, 3-कीर्ति ÷कीर्ति चाहते हैं लेकिन उसके योग्य कोई कर्म नहीं करते। चाहते हैं स्वर्ग, कर्म ऐसा करते हैं कि- नर्क भी देखकर नाक सीकोड़ ले।
हम ये तो चाहते हैं कि हमारा भला हो, लेकिन हम किसी का भला नहीं चाहते।
सच्चे अर्थ में मनुष्य बनना है, भगवत भक्त बनना है, ऐसी धारणा हो जाय तो कल्याण हो जायेगा।
मनुष्य की प्रकृति में सुधार सत्संग से ही सम्भव है।इस दौरान श्री दिव्य सत्संग कार्यक्रम आयोजक व व्यवस्थापक श्री घनश्यामदास जी महाराज, श्री दिव्य सत्संग मंडल पदाधिकारी सहित कई श्रद्धालु मौजूद थे। 

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