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सच्ची लगन से ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है। = श्री दिव्य मोरारी बापू।

सच्ची लगन से ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है। = श्री दिव्य मोरारी बापू।

गुलाबपुरा (रामकिशन वैष्णव)श्री 1008 श्री महामण्डलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू  कथा व्यास ने श्रीमद्भागवत कथा में श्री कृष्ण रुकमिण विवाह प्रसंग पर विस्तृत वर्णन किया। 
 श्रीकृष्ण कृपा लीला रिसोर्ट तांतपुर रोड जगनेर 
जिला-आगरा (उत्तर-प्रदेश) में चल रही साप्ताहिक श्री मद्भभागवत कथा में बताया कि  भगवान् श्रीकृष्ण और भगवती रुक्मिणी की महिमा का श्रीमद्  भागवत महापुराण में बड़ा विशाल वर्णन है।भगवान् श्री कृष्ण पूरण ब्रह्म परमात्मा है, भगवान की बहुत महिमा है। लेकिन संसार में ऐसी मां हुई जिसने भगवान को पुत्र बनाया। महारानी कौशल्या कहती हैं- "ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम-रोम प्रतिवेद कहे।सो मम उर बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहे।।" माता देवकी के यहां भी भगवान् बालकृष्ण के रूप में प्रकट हुये। महालक्ष्मी ही माता रुक्मिणी के रूप में प्रकट हुई हैं। भगवती की अमित महिमा है, धरती पर कोई माँ सक्षम नहीं हुई कि उसके यहां भगवती का पुत्री के रूप में जन्म हो। जब मां भगवती सीता के रूप में अवतार लेती है तो धरती से प्रकट हुई। "भई प्रगट कुमारी भूमि विदारी जनहितकारी भय हारी।अतुलित छवि भारी मुनि मनहारी जनक दुलारी सुकुमारी।।" वही मां जब भगवती रुक्मणी के रूप में प्रकट होती हैं तो महाराज भीष्म को सरोवर में स्वर्ण कमल के ऊपर कन्या के रूप में प्राप्त होती हैं।
पूरा परिवार श्री रुक्मिणी जी का विवाह द्वारकाधीश भगवान् श्री कृष्ण से करना चाहता था लेकिन श्री रुक्मिणी जी के बड़े भाई रुक्मी ने विरोध किया। रुक्मी का संग जरासंध, शिशुपाल, दुर्योधन आदि से था इसीलिए वह भगवान् से विरोध करता था। उसने अपनी बहन रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल के साथ तय कर दिया। श्रीरुक्मिणी जी को पता लगा कि कल शिशुपाल बारात लेकर के आने वाला है तब श्री रुक्मिणी जी ने सुदेव नाम के ब्राह्मण से पत्र के माध्यम से भगवान को संदेश भेजा। भगवान स्वयं पधारे, रुक्मी एवं शिशुपाल के समस्त सहयोगियों को परास्त किये। क्षत्रियों में विवाह की उस समय कई विधा थी।पण स्वयंवर, शौर्यशुल्क स्वयंवर, इच्छा स्वयंवर।भगवान् श्रीसीतारामजी का विवाह पण स्वयंवर था।महाराज जनक ने प्रतिज्ञा किया था कि जो धनुष भंग करेगा उसके साथ अपनी पुत्री का विवाह करूंगा। इच्छा स्वयंवर जैसे- नल दमयंती का स्वयंवर। दमयंती ने स्वयं ही नल का अपनी इच्छा से वरण किया।शौर्य शुल्क स्वयंवर भगवान् श्री कृष्ण और महारानी रुक्मणी का था। इसमें भगवान श्री कृष्ण ने शिशुपाल, जरासंध, रुक्मी आदि अनेक राजाओं के साथ बड़ा भारी संग्राम किया। सबको परास्त किया और फिर महाराज भीष्मक ने अपनी पुत्री रुक्मिणी का विवाह भगवान श्री कृष्ण के साथ किया।
रहिमन मनहि लगाई के देख लेइ जनि कोय।
नर को बस करिबो कहा नारायण बस होय।।
लीला में यही बताया गया कि महारानी रुक्मिणी की सच्ची लगन उन्हें कृष्ण की प्राप्ति में हेतु बनी। अगर हम लोगों की भी सच्ची लगन होगी तो संसार की कोई वस्तु क्या? सच्ची लगन से ईश्वर भी प्राप्त हो जाते हैं।कथा में श्री दिव्य मोरारी संत्सग के व्यवस्थापक श्री घनश्यामदास जी महाराज, सहित कई श्रद्धालु मौजूद थे।

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