श्रीशिवमहापुराण कथा में शिव के महामृत्युंजय स्वरूप का वर्णन किया गया।
रविवार, 20 अगस्त 2023
गुलाबपुरा (रामकिशन वैष्णव) स्थानीय सार्वजनिक धर्मशाला में चल रहे श्रीदिव्य चातुर्मास सत्संग
महोत्सव में श्रीशिवमहापुराण कथा में कथा व्यास-श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू ने बताया कि ,भगवान् शिव का जो महामृत्युंजय स्वरूप है, उसमें भगवान शंकर अपने दोनों हाथों से अपने सिर पर जल की धारा देते हैं। उनके पांच मुख हैं,पन्द्रह नेत्र हैं और मस्तक पर चंद्र है, जटा से सुशोभित हैं और भागीरथी गंगा प्रवाहित होती है, उनकी अंग की कांति हजारों सूर्य की आभा को कुंठित कर देती है। सदाशिव जब प्रकट हुए, उन्होंने अपने संकल्प से, अपने बाम भाग से, अपने अंदर से ही भगवती पार्वती को प्रकट किया। भगवती की अष्ट भुजाएं थी और उन्होंने दिव्य आयुद्धों को धारण किया हुआ था। भगवान् शंकर और पार्वती का विग्रह तैयार हो गया। इस प्रकार मूल ज्योति से सदाशिव और सदाशिव के बाम भाग से अम्बा पार्वती का प्राकट्य हुआ। सदाशिव और पार्वती अम्बा ने आपस में विचार किया कि संसार की रचना होनी है। संसार एक समुद्र है, जिसमें संकल्प रूपी तरंगे उठती रहती हैं। काम, क्रोध, लोभ और मोहरूपी जिसमें जानवर रहते हैं। अहंकार की गहराई है। यह ऐसा संसार होगा। हमें इस संसार पर केवल अनुग्रह की वर्षा करना है, बाकी सृष्टि की रचना, पालन और संहार के लिए दूसरी व्यवस्था करनी होगी। पहले उन्होंने अपने रहने के लिए व्यवस्था करने की सोची। उनके संकल्प से भूतभावन विश्वनाथ के अंदर से ही काशी नगरी प्रगट हो गई जिसका नाम आनंदवन है। उन्होंने अंबा पार्वती से कहा- प्रिय! यह संसार दुखों से भरा हुआ है। काम, क्रोध और लोभ इसमें भरे होंगे।हमें इस प्रपंच से अलग रह कर आनंदवन में बिहार करना है। आनंदवन में ही हम निवास करेंगे। तब भगवान सदाशिव के संकल्प से उन्होंने अपने हाथ में अमृत लेकर अपने बाय अंग के दसवें में अमृत मला, उसे श्रीमन्नारायण प्रगट हो गए। जिनके चार हाथ थे और शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हुए थे। नवरत्नों से जुड़ा मुकुट कानों में कुंडल गले में वैजयंती माला धारण किए हुए थे। उनका स्वरूप नीलकंठ था। नारायण से ब्रह्मा और संपूर्ण सृष्टि की रचना हुई। कथा में इस दौरान श्री दिव्य चातुर्मास सत्संग व्यवस्थापक श्री घनश्यामदास महाराज, गुलाबपुरा सत्संग मंडल के पदाधिकारी एवं श्रद्धालु मौजूद थे।