-->
दीपावली पर पहली पसंद है मिट्टी के दीये , मिट्टी के दीयों से रोशन होगें घर आंगन धनतेरस आज

दीपावली पर पहली पसंद है मिट्टी के दीये , मिट्टी के दीयों से रोशन होगें घर आंगन धनतेरस आज

राशमी (चित्तौड़गढ़) संवाददाता कैलाश चन्द्र सेरसिया

कुम्हार परिवारों को उम्मीद हैं की दीपावली त्यौहार मे इस बार अच्छा धंधा इन्कम होने की उम्मीद जगी है । धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक मिट्टी का दीपक जलाने से मंगल और शनि की कृपा प्राप्त होती हैं । इससे आज रविवार को समुचे उपखंड क्षेत्र में आज 23 अक्टूबर रविवार को धनतेरस का त्यौहार मनाया जाएगा , उसके बाद दीपावली व गोवर्धन पूजा पर्व मनाया जाएगा । कुम्हारों द्वारा चाक पर बनाए गए मिट्टी के दीए अब बाजारों सड़कों पर बिकने लगे हैं । राशमी उपखंड के गांव हरनाथपुरा एवं पहुना कस्बे में स्थानीय कुम्हार समाज के लोग मिट्टी के दीपक बनाने में जुट गए है , जिन्होंने मिट्टी के दीपक बनाकर तैयारी कर ली है तथा दीपावली की संध्या तथा उनका विक्रय करेंगे । दीपावली का पर्व जैसे जैसे नजदीक आ रहा है , वैसे ही कुम्हार ने चाक की रफ्तार बढ़ा दी हैं । दीपावली का पर्व से पहले कुम्हार अपने परिवार के साथ चाक पर मिट्टी के दीपक बनाने में व्यस्त है । बाजार में वैसे तो मिट्टी से बने दीपक की मांग कम रहती है , लेकिन दीपावली के पर्व पर हर घर में मिट्टी के दीपक जलाने की परंपरा पुरानी होने से इनकी धाक बाजार में बरकरार हैं । कुम्हार दीपावली के एक पखवाड़े पहले ही मिट्टी के दीपक बनाने में लग गए है । रामेश्वर प्रजापत पहुनां ने बताया कि पहले एक परिवार में लगभग 50 से 100 दीपक खरीदते थे लेकिन समय व प्रतिस्पर्धा के दौर में चायनीज गुजराती व इलेक्ट्रिक दीपक ने भले ही मिट्टी से बने दीपक की जगह ली हो , लेकिन पर्व पर इन दीपक का महत्व आज भी बरसों पुराना हैं । दीपावली के त्योहार को लेकर स्थानीय गाँव भी समय के साथ बदलते परिवेश में मोटर से संचालित चाक पर मिट्टी के दीपक के अलावा अन्य मिट्टी के बर्तन व पात्र बना रहे है । उन्होंने ने बताया कि अब मिट्टी के दीपक बनाना घाटे का सौदा रह गया है फिर भी परंपरा को बरकरार रखने के लिए दीपक तैयार कर रहे हैं । जिससे बाजार में इन दीपक की मांग बनी रहे । इधर , मिट्टी के दीपक बनाकर बेचने वाले कुंभकार दीपावली पर अच्छी आमदनी की उम्मीद में हैं । वे मिट्टी से दीयों को विभिन्न प्रकार के आकर्षक रूप दे रहे हैं । इस बार दीपावली पर घर की मुंडेर · दरवाजे व पूजा स्थान पर , रोशनी के लिए अलग अलग साइज व डिजाइन के दीपक मिल रहें हैं जिनकी डिमांड भी अच्छी है । इस कार्य में युवाओं का रुझान कम कुम्हार समाज के रामेश्वर प्रजापत ने बताया कि हमारी परंपरा पीढ़ी पीढ़ी इस काम को दर करती आ रही हैं लेकिन अब बच्चों में इसका क्रेज नहीं रहा - । बदलते समय में इन दीपक को खरीदने के बाद इन्हें जलाने के लिए भी घी तेल व बत्ती लगाकर मेहनत करनी पड़ती है । जबकि इलेक्ट्रिक दीपक व लाइटों को लगाने में इनती मेहनत नहीं लगती । इसलिए अब युवा भी इस कार्य से मुंह मोड़ने लगे हैं । पहले दीपावली पर हजारों दीपक की ब्रिकी होने से साल भर घर चलता था , अब लोग दस बीस से ज्यादा दीपक नहीं - । खरीदते । जिससे घर चलाना भी मुश्किल होने लगा है । फेरी लगाकर दीयों की बिक्री = चायनीज लड़ियों व झालर की बजाय इलाके में माटी के दीयों से दीपावली पर रोशनी का चलन पुनः बढ़ गया है । यहां दीपावली से पूर्व हर घर में मिट्टी के दीपक पहुंचाने के लिए फेरी लगाकर दीपक बैचने के लिए कुंभकारों की पुश्तैनी परम्परा आज भी कायम है जो दिनोंदिन फिर बढ़ने लगी है । गली मोहल्लों में फरी लगाकर घरों में दीये पहुंचाने आई कुंभकार समाज की एक महिला व बच्चे ने बताया कि मिट्टी के बर्तन बनाने का काम प्रभावित होने के बावजूद यजमानों के घर दीवावली से पूर्व शगुन के रूप में दीये पहुंचाने की पुश्तैनी परम्परा अब भी निभा रहे हैं । घरों में जाकर पांच सात दीये बिना मोल भाव देकर बदले में उनसे शगुन के रूप में गेहूं , गुड़ , चावल , तेल कपड़ा व नगदी मिलता है । इससे आर्थिक सहायता हो जाती है तथा पर्व खुशी से मना लेते हैं । गृहणियां व बुजुर्ग महिलाएं घर घर दीपक पहुंचाने वाली कुंभकार महिलाओं का बेसब्री से इंतजार करती हैं । खुशी से मिट्टी के दीपक शगुन के रूप में लेकर उन्हें नेग भी देती हैं । कुंभकार के दीयों से सुख स्मृद्वि व दुआएं जुड़ी होती हैं । माता लक्ष्मी के पूजन में इन्हीं मिट्टी के दीपकों का महत्व है । हर वर्ग के लोग मिट्टी के दीयों को शगुन मानकर श्रद्धा से सरसों के तेल या घी से भरकर जलाते हैं । इससे घर में रोशनी के साथ साथ सुगंध भी होती है र घर सजाने में जुटे लोग गाँव सहित ग्रामीण क्षेत्र में निवास करने वाले लोग उत्साह से माता लक्ष्मी के स्वागत के लिए घरों में रंग रोगन कली व गारा लगाने में व्यस्त हैं । आंगन में गाय के गोबर का लेप शुभ होता हैं । इससे लक्ष्मी प्रसन्न होती है । यह परम्परा वर्षों से चली आ रही है । जिसकी पालना हम आज भी कर रहे है । पटाखों एवं मिट्टी के सजे दीये विविध आकार के दीये एवं बिजली की झालरों से बस स्टैंड बाजार पूरी तरह से रंगीन नजर आ रहा है । कृत्रिम फूलों के गुलदस्तों से सजी है ।

Ads on article

Advertise in articles 1

advertising articles 2

Advertise under the article