खेजड़ी राजकीय विधालय में आयुर्वेद विषय पर संगोष्ठी का हुआ आयोजन!
शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2022
गुलाबपुरा (रामकिशन वैष्णव)
राज्य सरकार के आदेश अनुसार राजकीय आयुर्वेद औषधालय खेजडी चिकित्साधिकारी विजय वैष्णव द्वारा आयुर्वेद की विभिन्न औषधीय पौधे के बारे में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय खेजडी के छात्र व छात्राओ को विस्तृत जानकारी दी गई। डॉ वैष्णव ने आयुर्वेद के सिद्धांत , आहार , विहार , दिनचर्या, ऋतुचर्या वे बारे में छात्र-छात्राओं को जानकारी प्रदान की। डॉ वैष्णव के अनुसार
सादा और सुपाच्य आहार: ग्रीष्म ऋतु यानी गर्मी के मौसम में सूर्य बलवान रहता है और अपने प्रभाव से समस्त जीवों के बल को क्षीण करता है। इस ऋतु में जठराग्नि मंद रहती है, जो वर्षा ऋतु के आते-आते और भी मंद हो जाती है। इस निरंतर कम होते बल और मंद पड़ती अग्नि को सामान्य बनाए रखने के लिए सादा जल, फल, फलों के रस, दही, छाछ के साथ-साथ सादा भोजन, जो तीक्ष्ण मिर्च-मसालों से रहित हो, सब्जियां अधिक तली-भुनी न हों, चावल, गेहूं से बनी रोटियां आदि का सेवन उचित रहता है एवं
मौसम के अनुकूल : इन दिनों जो लोग उष्ण गुण वाली चीजों का बहुतायत में सेवन करते हैं, उन लोगों में त्वचा रोग, फोड़े-फुंसी, कील-मुंहासे, रक्तजनित बीमारियां, उच्च रक्तचाप आदि से ग्रसित होने की आशंका बढ़ जाती है। वर्षा ऋतु आते ही हवा में आद्र्रता बढ़ जाती है, जिससे वातावरण का तापमान गिरता है और थोड़ी ठंडक भी होने लगती है। आयुर्वेद के सिद्धांत के अनुसार, वर्षा ऋतु में वात दोष की प्रबलता बढ़ती है। जिससे वात प्रकोप से होने वाले बहुत से रोग घेर लेते हैं। शीतल खानपान वर्षा ऋतु में वात वृद्धि का कारण बनता है। मौसम बदलते ही वात व कफ वाले रोग जैसे जुकाम, खांसी, वायरल फीवर, कंजक्टीवाइटिस और अर्थराइटिस की परेशानी बढ़ जाती है। इनकी रोकथाम के लिए वर्षा ऋतु के आरंभ से ही खानपान में यथोचित परिवर्तन करना चाहिए। जो भी भोजन करें, वह ताजा व गर्म हो और कम मसालेदार हो तो बहुत लाभकारी रहता है। इन दिनों चाय व दूध में यथोचित मात्रा में तुलसी और अदरक का सेवन भी आरंभ कर दें तो वात दोष उत्पन्न नहीं होता और वर्षा ऋतु में होने वाले विभिन्न रोगों से बचा जा सकता है।
इस दौरान महावीर जांगिड (कंपाउंडर), योग प्रशिक्षक अक्षय कुमार वैष्णव व दिव्या शर्मा (योग प्रशिक्षक ), विद्यालय शिक्षक सहित विधार्थी मौजूद थे ।