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साहित्य सृजन कला संगम की काव्य गोष्ठि एवं दीपावली स्नेह मिलन समारोह संपन्न

साहित्य सृजन कला संगम की काव्य गोष्ठि एवं दीपावली स्नेह मिलन समारोह संपन्न

 

शाहपुरा-मूलचन्द पेसवानी 

शाहपुरा के साहित्य सृजन कला संगम की ओर से दीपावली स्नेह मिलन समारोह व मासिक काव्य गोष्ठि का आयोजन गांधीपुरी स्थित कर्मभूमि पर आयोजित किया गया। 

माताश्रय के ट्रस्टी रामस्वरूप काबरा के मुख्य आतिथ्य एवं शिक्षाविद सोमेश्वर व्यास की अध्यक्षता में आयोजित समारोह में संयोजक वेदप्रकाश सुथार ने सभी का स्वागत करते हुए दीपावली की शुभकामनाएं देकर मुंह मीठा कराया। काव्यगोष्ठि का आगाज अतिथियों के मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्जवलित करके किया गया। कवि शिवप्रकाश जोशी ने आराधना मां शारदे स्वीकार कर, सरस्वती वंदना प्रस्तुत कर गोष्ठि का आगाज किया। 

गीतकार बालमुकंद छीपा ने जन्म जीवन की प्रथम झांकी मनोहर, मानता मानव जिसे ही परम सुख कर, मृत्यु अंतिम लक्ष्य जो जन्म का है, मूढ़ मन कहता ओर वह है भंयकर गीत प्रस्तुत किया। सुनील भट्ट ने कर्म का लेख जब में मिटाने चला, याद आई मुझे बीते वक्त की, राजा बनने वाले ही वाले थे, राम सुनो कर्म उनको भी बनवास लेके चला, भंवर गौड़ ने जीवन में दो पेड़ लगाये जिससे पर्यावरण शुद्व हो जाए, शिव शुन्य ने कर्म करना होगा कर्म चुनना होगा, शिवप्रकाश जोशी ने मनुआ ऐसा कर्म कर जैसे नदियां नीर, तन को निर्मल करे, मन की हर ले पीर सुनाकर कर कार्यक्रम को उंचाईयां प्रदान की। 

कवि दिनेश बंटी ने तु मशीनी बन गया है क्यूं सुबह की शाम करता , जी रहा है सबके लिए खुद के लिए क्यूं जाम भरता है, प्रस्तुत की। संचिना अध्यक्ष रामप्रसाद पारीक ने वक्त बेवक्त सख्त हो जाता है, बेवक्त में इंसान निशक्त हो जाता है रचना सुनायी। ओमप्रकाश सनाठ्य ने हम है यहां संभव है कर्म का फल है, में तुम्हारी देहरी का दीप हूं कोरा प्रिये, कर सके थोड़ा उजाला तमस में मेरे लिए, संस्था अध्यक्ष जयदेव जोशी ने घर पग चले नित शत पथ, संचिना महासचिव गीतकार सत्येंद्र मंडेला ने कद छपपन भोग पासी रे हल्म, कुण जाणे रे ईन्सान, मेरी उम्र रोज कुछ नया सीखाने लगी है हर बात में औलाद आंखे दिखाने लगी है, गीत सुनाकर कार्यक्रम में अलंग रंग पैदा कर दिया।

संस्था महासचिव डा. कैलाश मंडेला ने कर रहा हूं कर्म जो में क्या यही है धैर्य मेरा, जो मिला मुझको यहां क्या पेय में ही है मेरा, दम्य को दीवार के पीछे खड़े तुम कभी स्वीकार ना पाये हमें रचना सुनायी। संयोजक वेदप्रकाश सुथार ने कर्म शरीर में हो या परिवार में रचना के माध्यम से सामाजिक व पारिवारिक स्थितियों का चित्रण कर कुरूति पर चोट की। सोमेश्वर व्यास ने में जुगलबंदी करता हूं अब, मैने कर्म ही ऐसा कर लिया की रो रहा हूं उनके लिए अब तक सुनाया।

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