-->
घर पर बनी वस्तु व व्यंजन में ज्यादा शुद्धता रहती है== श्री प्रियदर्शन मुनि मा.

घर पर बनी वस्तु व व्यंजन में ज्यादा शुद्धता रहती है== श्री प्रियदर्शन मुनि मा.

गुलाबपुरा (रामकिशन वैष्णव)   धार्मिक संस्कार जागरण शिविर के तृतीय दिवस पर ओजस्वी वक्ता संवर प्रेरक व्याख्यान वाचस्पति उपाध्याय प्रवर श्रद्धेय श्री प्रियदर्शन मुनि जी महाराज ने बताया कि अशोक प्रवृत्तियों का व्याख्यान जीवन में इतना आसान कार्य नहीं है अतः उनसे निवृत्ति पाने के लिए हमें हर तरह से प्रयासरत रहना पड़ेगा। सर्वप्रथम हमारे खानपान में चल रही है शुभ प्रवृत्तियों पर हमें ध्यान देना पड़ेगा घर पर बनी वस्तु या व्यंजन में शुद्धता ज्यादा रहती है भले ही उसका स्वाद बाजार की वस्तु के समान नहीं हो और वह भोजन स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होता है नुकसान करने वाला नहीं इसी के विपरीत बाजार की वस्तुओं में स्वाद भले ही ज्यादा हो सकता है मगर शुद्धता नहीं होती और वह वस्तु हो सकता है कि हमारे स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचा दें इसलिए हमें पहले तो हमारी बाजार में खाने की आशु प्रवृत्ति को रोकना जरूरी है। खानपान के साथ पहनाओ पर भी ध्यान देना जरूरी है आजकल शॉर्ट्स और टाइट कपड़े पहनने की फैशन चल रही है मगर यह संस्कृति और स्वास्थ्य दोनों को गिराने वाले हैं अतः व्यक्ति को जितना समय और शालीन वैनावा बन सके उस हेतु प्रयास और पुरुषार्थ करना चाहिए।इसी के साथ सिनेमा टीवी मोबाइल आदि के माध्यम से भी अनेक विकृतियों और अशुभ प्रवृत्तियों व्यक्ति के जीवन में बढ़ रही है एक तरफ अगर शादी का वीडियो देखा जाता है तो उस समय में व्यक्ति के मन में कैसा भाव आएंगे निश्चिंत रूप में शादी से संबंधी विचार आएंगे और दूसरी तरफ किसी दीक्षार्थी की रिक्शा का वीडियो देखा जाए तो उससे कैसा भाव आएंगे दीक्षार्थी की दीक्षा का वीडियो देखने पर दीक्षा के ही विचार आएंगे साजन तो वही है यह लेने वाले के ऊपर निर्भर करेगा कि वह उनसे क्या ग्रहण करता है। इसके साथ ही घर परिवार में या समाज में जहां आप रहते हैं वहां सब लोगों के साथ आपका जो व्यवहार है वह किस प्रकार का है आप की बोली चाली किस प्रकार की है यह आपका रहन-सहन व्यवस्थित है या नहीं इस पर व्यक्ति को स्वयं ही चिंतन और मनन करने की आवश्यकता है सारांश रूप में यही कहा जा सकता है कि हर व्यक्ति चाहता है कि सामने वाला मेरे साथ अच्छा व्यवहार करें अच्छा बोले और अच्छे से रहे तो उसके लिए सबसे पहले हमें सामने वाले के साथ अच्छा व्यवहार करना पड़ेगा अच्छा बोलना पड़ेगा और अच्छा रहना पड़ेगा इस प्रकार हम अगर हर समय और हर समय हमारी अशुभ प्रवृत्तियों का त्याग कर पाएंगे और शुभ प्रवृत्तियों में प्रवृत्त हो पाएंगे तो निश्चित रूप से हम अपनी आत्मा के लक्ष्य और विकास को प्राप्त करने में सफल हो सकेंगे।

Ads on article

Advertise in articles 1

advertising articles 2

Advertise under the article